SHYAMA-SHYAM
Nand ka chhora with Shri balar dau bhaiya.
Monday, 19 June 2017
Wednesday, 14 June 2017
जीवन का प्रथम लक्ष्य ईश्वर को प्रसन्न करना है:-
हम अपने हाथों का प्रभु से श्रद्धा के साथ प्रार्थना करने में, पैरों का उन्हें सर्वत्र खोजने में, मन का उनकी नित्य उपस्थिति के चिंतन में लगाना चाहिए। विचार से हृदय सिंहासन पर प्रभु ही विराजित होने चाहियें— "शान्ति के रूप में प्रभु, प्रेम के रूप में प्रभु, दया के रूप में प्रभु, समझ के रूप में प्रभु, करुणा के रूप में प्रभु, ज्ञान के रूप में प्रभु ही सर्वत्र हो," हमारे पास समय बहुत थोड़े हैं, और यात्रा बहुत लम्बी करनी है। आत्मा से परमात्मा को पहचान लेने तक की यात्रा करनी है। इस माया के परदे को चीर कर अपने अन्दर छिपे बैठे उस अनन्त चैतन्य ब्रह्म की पहचान करनी है।
हमें सदैव यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यह संसार केवल साध्य की प्राप्ति के लिए साधन मात्र है। चलते-फिरते, उठते-बैठते, कैसे भी भगवान का नाम लेते रहिये, स्मरण करते रहिये
प्रभु-प्रेम एक गहरा आकर्षण है। जीवन में प्रभु के प्रति प्रेम ज्यों-ज्यों उतरता चला जाता है, त्यों-त्यों संसार के प्रति वैराग्य स्वत: घटित होने लगता है। संसार में कुछ भी प्रभु-प्रेम से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है।
हमें जो भी प्राप्त है सब प्रभु का है अपना कुछ नहीं है। सदा हमें भाव से कर्ता नहीं अकर्ता होना है। ☝🏼☺
जै श्री हरी श्री हरी श्री हरी...🌸💐👏🏼
हमें सदैव यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यह संसार केवल साध्य की प्राप्ति के लिए साधन मात्र है। चलते-फिरते, उठते-बैठते, कैसे भी भगवान का नाम लेते रहिये, स्मरण करते रहिये
प्रभु-प्रेम एक गहरा आकर्षण है। जीवन में प्रभु के प्रति प्रेम ज्यों-ज्यों उतरता चला जाता है, त्यों-त्यों संसार के प्रति वैराग्य स्वत: घटित होने लगता है। संसार में कुछ भी प्रभु-प्रेम से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है।
हमें जो भी प्राप्त है सब प्रभु का है अपना कुछ नहीं है। सदा हमें भाव से कर्ता नहीं अकर्ता होना है। ☝🏼☺
जै श्री हरी श्री हरी श्री हरी...🌸💐👏🏼
बालकृष्ण का नृत्य....
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
सारे व्रज में श्रीकृष्ण के नृत्य की चर्चा होने लगी। दल-की-दल व्रजगोपिकाएं श्रीकृष्ण का नृत्य देखने नंदभवन में आने लगीं।
आनन्द के अवतार श्रीकृष्ण भी अपने मधुर नृत्यरस का सारे व्रजवासियों में मुक्तहस्त से वितरण करते थे।
श्रीकृष्ण का यह लीलामृत, जो नाग, गंधर्व और किन्नरों के लिए भी दुर्लभ है, उसे गोबर पाथने वाली व्रजबालाएं दोनों हाथों से भर-भरकर पान कर रहीं थीं
श्रीकृष्ण का नृत्य देखकर मोर नंदमहल के प्रांगण में आ जाते। कोई गोपी मोर पकड़ कर श्रीकृष्ण के सामने खड़ा कर देती और कहती–‘देख नीलमणि!
यह मयूर का नृत्य देख। कितना सुन्दर नृत्य है! तू भी इसकी तरह नाच तो सही।’
गोपी की इच्छा पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण अपनी दोनों भुजाओं को पीठ की ओर ले जाकर फैला देते,
कमर झुकाकर मोर की तरह गरदन उठा लेते और रुनझुन-रुनझुन ध्वनि करते हुए व्रजबालाओं की परिक्रमा करने लगते।
गोपियों के आनन्द का पार नहीं रहता। नंदमहल का प्रांगण खुशी से गूंज उठता और गोपियां श्रीकृष्ण को अपने वक्ष:स्थल से लगा लेतीं।
इस प्रकार श्रीकृष्ण के नृत्य को देखना, उनके गायन को सुनना और बालसुलभ क्रीडाओं को देखना ही व्रजगोपियों की दिनचर्या बन गयी थी।
व्रजरानी यशोदा ताली बजाते हुए मधुर स्वर में गाकर कन्हैया को नंदमहल के आंगन में नचातीं जिससे श्रीकृष्ण के कमर की किंकणी और नूपुरों की स्वरलहरियों से सारा प्रांगण सदैव गुंजायमान रहता था।
प्रात:काल होते ही व्रजसुन्दरियां नंदमहल के प्रांगण में एकत्र हो जातीं और श्रीकृष्ण से मनुहार करतीं–
‘व्रजनन्दन! तुम अपनी बालचेष्टाओं से हमारे मन को चुरा लेते हो। हम सब तुम पर बलिहार जाती हैं। तू नाच दे! नाच दे! यह ले–थेई थेई थेई तत्त थेई।’ इस प्रकार व्रजसुन्दरियां ताल देने लगतीं और बालकृष्ण नाचने लगते।
व्रजरानी अपने कन्हैया का अस्पष्ट गायन और गोपियों की ताल के साथ नृत्य देखकर अपना कार्य करना भूल जातीं और विस्मित हुई न जाने कितने समय के लिए खड़ी रह जातीं।
नंदबाबा भी अपने पुत्र के मनोहर नृत्य को देखने की आशा से आते परन्तु उन्हें देखकर कन्हैया सकुचा जाते।
माता यशोदा अपने पुत्र को गोद में उठाकर बारम्बार उनके कपोलों को चूमतीं और उन्हें नंदबाबा को नृत्य दिखाने के लिए प्रोत्साहित करतीं–
माता का प्रेम भरा प्रोत्साहन पाकर श्रीकृष्ण करताली देते हुए नूपुर की रुनझुन-रुनझुन ताल पर नाचने लगते और नंदबाबा अपलक नेत्रों में उस छवि को भरे हुए कुछ समय के लिए सब कुछ भूल जाते और उनका मन उस नूपुरध्वनि के साथ नाचने लगता।
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सारे व्रज में श्रीकृष्ण के नृत्य की चर्चा होने लगी। दल-की-दल व्रजगोपिकाएं श्रीकृष्ण का नृत्य देखने नंदभवन में आने लगीं।
आनन्द के अवतार श्रीकृष्ण भी अपने मधुर नृत्यरस का सारे व्रजवासियों में मुक्तहस्त से वितरण करते थे।
श्रीकृष्ण का यह लीलामृत, जो नाग, गंधर्व और किन्नरों के लिए भी दुर्लभ है, उसे गोबर पाथने वाली व्रजबालाएं दोनों हाथों से भर-भरकर पान कर रहीं थीं
श्रीकृष्ण का नृत्य देखकर मोर नंदमहल के प्रांगण में आ जाते। कोई गोपी मोर पकड़ कर श्रीकृष्ण के सामने खड़ा कर देती और कहती–‘देख नीलमणि!
यह मयूर का नृत्य देख। कितना सुन्दर नृत्य है! तू भी इसकी तरह नाच तो सही।’
गोपी की इच्छा पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण अपनी दोनों भुजाओं को पीठ की ओर ले जाकर फैला देते,
कमर झुकाकर मोर की तरह गरदन उठा लेते और रुनझुन-रुनझुन ध्वनि करते हुए व्रजबालाओं की परिक्रमा करने लगते।
गोपियों के आनन्द का पार नहीं रहता। नंदमहल का प्रांगण खुशी से गूंज उठता और गोपियां श्रीकृष्ण को अपने वक्ष:स्थल से लगा लेतीं।
इस प्रकार श्रीकृष्ण के नृत्य को देखना, उनके गायन को सुनना और बालसुलभ क्रीडाओं को देखना ही व्रजगोपियों की दिनचर्या बन गयी थी।
व्रजरानी यशोदा ताली बजाते हुए मधुर स्वर में गाकर कन्हैया को नंदमहल के आंगन में नचातीं जिससे श्रीकृष्ण के कमर की किंकणी और नूपुरों की स्वरलहरियों से सारा प्रांगण सदैव गुंजायमान रहता था।
प्रात:काल होते ही व्रजसुन्दरियां नंदमहल के प्रांगण में एकत्र हो जातीं और श्रीकृष्ण से मनुहार करतीं–
‘व्रजनन्दन! तुम अपनी बालचेष्टाओं से हमारे मन को चुरा लेते हो। हम सब तुम पर बलिहार जाती हैं। तू नाच दे! नाच दे! यह ले–थेई थेई थेई तत्त थेई।’ इस प्रकार व्रजसुन्दरियां ताल देने लगतीं और बालकृष्ण नाचने लगते।
व्रजरानी अपने कन्हैया का अस्पष्ट गायन और गोपियों की ताल के साथ नृत्य देखकर अपना कार्य करना भूल जातीं और विस्मित हुई न जाने कितने समय के लिए खड़ी रह जातीं।
नंदबाबा भी अपने पुत्र के मनोहर नृत्य को देखने की आशा से आते परन्तु उन्हें देखकर कन्हैया सकुचा जाते।
माता यशोदा अपने पुत्र को गोद में उठाकर बारम्बार उनके कपोलों को चूमतीं और उन्हें नंदबाबा को नृत्य दिखाने के लिए प्रोत्साहित करतीं–
माता का प्रेम भरा प्रोत्साहन पाकर श्रीकृष्ण करताली देते हुए नूपुर की रुनझुन-रुनझुन ताल पर नाचने लगते और नंदबाबा अपलक नेत्रों में उस छवि को भरे हुए कुछ समय के लिए सब कुछ भूल जाते और उनका मन उस नूपुरध्वनि के साथ नाचने लगता।
Monday, 12 June 2017
SHRI KRISHNA KA RADHARANI KE SATH PREM VIBAH
EK---------din ki bat hai shri nand baba gou charane ke vrindavan ke ghore jangal me gaye aur sath me kanhiya ko le gaye, sandhya ki vela thi tabhi achanak tej andhi-toofan aaya aur tej barishn hone lagi =====bijli chamak rahi thi nand baba ghabra gaye kahne lage ki kaisi aaj musibat an padi aaj sath me lala ko lekar aya tabhi ye batabaran bana.
kanhiya ko bachane ke tai baba ne pass hi khade ek baat briksh ke neeche jakar, kanhiya ko apni godi me liya aur chupakar baith gaye .
tabhi usee samy bahaa par ek -11 barshiya chhoti si kanya prikat hui bo itni sundar , itni sundar thi esa lag rahaa tha ki karono soorya ek sath uday hue ho tabhi -- nand baba man hi man sichne lage are kiti tribhuban sundar , tejaswani balika jo adwatiya hai , ye is ghor jangal me kya kar rahi hai. bo balika nand baba se kahne lagi are baba tum apne balak ko hamari god me dedo. baba ne ek bar bhi nahi socha aur kanhiya ko us balika ke hath me de diya.
thodi hi der me baba ne dekha ki , tattchhar us balika ne apna roop chota- kanhiya jitna roop dharan kiya , naradji prakatya hue uske bad vramhaji bi prkatya hue bahi usi bat briksh ke neeche dono ka parighrahan sanskar karbaya, devta foolon ki barsha karane lage is prakar vibah sampann hua aur sabhi antardhyan ho gaye---andhi bhi than gayi barish bhi band ho gayi.
to dosto is prakar shri thakur ji ka shri radha rani ke satha prem vibah hua.
PREM SE KAHO --- JAI SHRI KRISHNA- RADHE
kanhiya ko bachane ke tai baba ne pass hi khade ek baat briksh ke neeche jakar, kanhiya ko apni godi me liya aur chupakar baith gaye .
tabhi usee samy bahaa par ek -11 barshiya chhoti si kanya prikat hui bo itni sundar , itni sundar thi esa lag rahaa tha ki karono soorya ek sath uday hue ho tabhi -- nand baba man hi man sichne lage are kiti tribhuban sundar , tejaswani balika jo adwatiya hai , ye is ghor jangal me kya kar rahi hai. bo balika nand baba se kahne lagi are baba tum apne balak ko hamari god me dedo. baba ne ek bar bhi nahi socha aur kanhiya ko us balika ke hath me de diya.
thodi hi der me baba ne dekha ki , tattchhar us balika ne apna roop chota- kanhiya jitna roop dharan kiya , naradji prakatya hue uske bad vramhaji bi prkatya hue bahi usi bat briksh ke neeche dono ka parighrahan sanskar karbaya, devta foolon ki barsha karane lage is prakar vibah sampann hua aur sabhi antardhyan ho gaye---andhi bhi than gayi barish bhi band ho gayi.
to dosto is prakar shri thakur ji ka shri radha rani ke satha prem vibah hua.
PREM SE KAHO --- JAI SHRI KRISHNA- RADHE
Thursday, 8 June 2017
Shri thakur ji aur radha rani ka ka jhula mahotsav
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Srawan mas ka mahina thaa apranha aur sandhya ki vela me badlon ki gadgadahat, bijli ki chamak, aasman me kali ghataye chchai hui he, pakchchi karalap kar rahe hai aur mayur nritya kar rahe isi samay Shri syama shyam shri nivrat nikunj me jhoole par baithe the, jisme ek taraf kishoriju hai or dusri taraf lalita sakhi hai aur asta sakhiyan thakur shri shyama-shyam ko sawan ke geet gakar jhula jhulaa rahi thi shri priya-preetam ko.
tabhi shri ji ki nahar shri ast sakhiyo par gayi aur un par karuna aa gayi kyonki bo to karuna ban hai or bo sochti he jhula jhulate samay kisi ko ye na lage ki shyam sundar kewal hamse hi pyar karte ho. is karan se kahi esa na ho jaye jisse sakhiya udas na ho. isliye shiji ne sabhi sakhiyon ko bari-bari se daye-banye karke do-do sakhiyon ko bithaya our sakhion ko swayam jhula jhulati ja rahi hai. ye drishya dekhkar shri thakurji sriji ke prati bhab vihore gaye aur kahane lage dhanya kishori ju ap to karuna ki khan ho jo aap sabpe karuna karke sabko sukh pahuncha rahi hai.
AAj to priya-preetamju ese lag rahe hai jaise badlon ke beech me bijli chamak rahi ho.
or theek baisa hi prateet bhi ho raha hai kyonki usi samay dhimi-2 barish bhi ho rahi hai aasma me kali ghatayen bhi isi beech thakur-thakurani chamakti hui bijli si prateet ho rahi hai.
is prakar priya-kantju ka ye jhula mahotsav pure srawan mass tak chalata rahta hai.
ttha
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